क्या हाथरस में बलात्कार नहीं हुआ? पर्दे के पीछे

क्या हाथरस में बलात्कार नहीं हुआ? पर्दे के पीछे

रानी मुखर्जीअभिनीत और राजकुमत गुप्ता निर्देशित फ़िल्म नो वन क्लिड जेसिका' का नाम ही सव कुछ उजागर कर देता है। दिल्ली के पांच सितारा बार में अमीरजादा एक ड्रिंक मांगता है। बार गर्ल जेसिका लाल कहती है कि रात 11 बजे के बाद शराब नहीं दी जाती। वह अपना सामान जमाने के लिए रुकी है।

अमीरजादा उसे गोली मार देता है। जांच-पड़ताल क्रो साधन संपत्र व्यबित प्रभावित करता है । न्याय के प्रति समर्पित रानी मुखर्जी अपने याचिका प्रकरण को पुन: कोर्ट में लगाने में सफल होती है। उसे डराया धमकाया जाता है।

यहां तक कि जेसिका की सगी बहन भी उससे प्रार्थना करती है कि वह न्याय के लिए संघर्ष न करे। अदालत में वकील साहिबा अपने अखिरी वक्तव्य मे कहती हैं किं संभवत: किसी ने जेसिका लाल की हत्या नहीं की। तो क्या उसने अमीरजादे की रिवाल्वर से आत्महत्या की है?

फिल्म 'पिंक' में अमीरजादे की मनमानी करने का विवरण है। इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन अभिनीत वकील ने अपने क्यान में कहता है कि 'नो' एक शब्द मात्र नहीं 'नो' एक पूरा बयान है। यहां तक कि शादीशुदा पत्नी के इन्कार का भी आदर किया जाना चाहिए।

दिल्ली में चलती हुइं बस में बलात्कार हुआ और 'निर्भया' नामक कानून भी बना । फ़िल्म 'हाईवे' अत्यंत प्रभावोत्पादक वनी। एक घिनौना सच यह सामने आया कि एक परिवार अपने लाभ और उद्योग संचालन के लिए जानकर भी अनदेखा करता है कि नेताजी ने उनकी अबोध बालिका के साथ क्या किया है।
फिल्म ' अमृत मंथन' में एक पति अकारण ही अपनी पत्मी को मारतापीटता है। जज महोदय कहते हैं कि पति होने के कारण उसे पत्नी को पीटने का अधिकार हे। यही नारी अपने जैसी पीड़ित महिलाओं का दल बनाती है और अन्याय करने वाले पुरुषों को दंडित करती है।

इसी विचार मे प्रेरित फिल्म 'गुलाब गैंग' सार्थक सिध्द हुई। प्राय: बलात्कार की दुर्घटनाओं में नारी को मारापीटा जाता है। उमके अधमरी होने के बाद दुष्कर्म किया जाता है। उमके होशो-हवास में रहने पर यह संभव नहीं है क्योंकि नारी पुरुष से अधिक ताकतवर है। इस बिषय पर सिमॉन द व्यू की 'सेकंड मेक्म' प्रकाश डालती है। इस किताब का अनुवाद और अन्य भाषाओं में किया जा चुका है।

Divya samvad
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प्राचीन ग्रंथों के गलत अनुवाद अवाम के तनमन में गहरे बैठे हुए हैं और आधुनिकता या तर्क प्रधान सोच खारिज की जा चुकी है। इसलिए किसान आंदोलन हो या बलात्कार की फोरेंसिक रिपोर्ट में हेराफेरी हो, व्यवस्था साफ बच कर निकल जाती है। अवाम की सामुहिक स्मृति में अन्याय पहले ही खारिज हो चुका है। इस सामूहिक मनोविकार को फिलिस्तनिज्म कहा जाता हैं। इस समय यह लाइलाज लग रहा है । सृष्टि का नियम सतत परिवर्तनशील है । देर-सबेर परिवर्तन होगा। 'बूट पॉलस' फ़िल्म के गीत का एक पंक्ति इस तरह है।

किसी शाम पल दो पल ही जले. ऐसे दीए की दया मांगते है, तुम्हारे है तुमपे मांगते हैं। एक शेर इस तरह है'जहां रहेगा, वहीं रोशनी लुटाएगा, का अपना कोई मकां नहीं' । गौरतलब ओर चिंताजनक है कि एक ही प्रांत के तीन अलग-अलग शहरों में दुष्कर्म का कांड होता है । एक मिथ्या सी धारणा है कि चोर को राजा वना दो तो चौरी की घटना नहीं होगी परंतु यथार्थ यह है कि बलात्कार को वैधता प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जंगल में जिसकी लाठी होती है भैंस उसी की मानी जाती है। जाने कैसे गीत बना. मेरी भैस को डंडा क्यों मारा, अपनी भैंस को मालिक हीं डंडा मार सकता है। अपने देश की बेटियों को डंडा भी हम ही मार सकते हैं।

ज्ञातव्य है कि राजकुमार संतोषी ने 'लज्जा' नामक फ़िल्म में सभी सताई गई नारी पात्रों के नाम सीता के समानार्थी रखे है जैसे एक पात्र वैदेही है। इम फ़िल्म में कुछ अनावश्यक दृश्य हटा दिए जाते तो इमका प्रभाव बढ सकता था। बहरहाल यथस्थिति बनाए रखने को सुशासन कहते हे हमारे देश का मंत्र है "यत्र नार्यस्तु पूज्यस्तों रमनी तत्र देवता" ।