कितनी छोटी सी है जिन्दगी,

हर सूरते-हाल में खुश रहो।

जो पास में, पहुंच में न हो,
उसर्क इन्तजार में खुश रहो।
जो नज़दीक सै दूर हो गया
उसकी आवाज़ में खुश रहो!

जो लौटकर नहीं आनेवाले
उसकी याद में खुश रहो!
कल कभी 'आता ही नहीं
"अभी,आज में खुश रहो।

कोई रूठ गया हो अगर
रूठने कै अंदाज में खुश रहो!
अंजाम कै लिऐ बेसब्र क्यों
अपने आगाज में खुश रहो।

'संग कोई और हो न हो

अपने आप मॅ खुश रहो।
किसी कै वश में कुछ नहीं
खुदा कै साथ में खुश रहो।

यहाँ कुछ निर्णय नहीं हो सकता
बस, काम-काज में खुश रहो।
स्वर्ग-नरक कहीं और नहीं है
प्रेम कै रीति रिवाज़ में खुश रहो।

हर भोग बना देता है भिखारी

संयम और त्याग में खुश रहो।
जल्दी कुछ हो नहीं सकता
अपने ही संसार में खुश रहो !

हर सुख में छिपा है यहाँ दु:ख
किसी भी हालात में खुश रहो।
न अतीत है, न ही कहीं भविष्य
वर्तमान के सरोकार में खुश रहो।

यहां कुछ पूरा हो नहीं सकता
असार के सार में खुश रहो।
उपयोग पर ही निर्भर है परिणाम
जवाब कै हर सवाल मॅ खुश रहो!

कभी अमावस , कभी 'पूनम' ये जिन्दगी
ताउम्र वसंत और पतझर में खुश रहो।
मिलता नहीं किसी को किनारा
नदी के मझधार में खुश रहो!

रोशनी यहां छलाचा-मात्र ही है
अंधेरे कै अंधकार में खुश रहो!
खार और गुलाब में खुश रहो

सुभाष चन्द्र झा
संयुक्त आयुक्त सह सचिव क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार
भागलपुर प्रमण्डल, भागलपुर 812002