एक दादा जी (आम जनता) के दो पोते थे। एक का नाम “प्राइवेट” और दूसरे का नाम “सरकारी” था।

एक दिन दादा जी के मोबाइल की ब्राइटनेस कम हो गई।

दादा जी “सरकारी” के पास गए और बोले, बेटा मोबाइल में देखो क्या समस्या है, कुछ दिखाई नहीं दे रहा।

सरकारी” बोला- दादा जी थोड़ा इंतजार कीजिए, मुझे पिता जी (सरकार) ने काफी काम दिए हैं, थोड़ा सा फुर्सत मिलते ही आपका काम करता हूं।

दादा जी में इतना धैर्य कहां था कि इंतजार करते।

दादा जी पहुंचे “प्राइवेट” के पास, “प्राइवेट” बड़े फुर्सत में बैठा था।

दादा जी को पानी पिलाया और पूछा, दादा जी बताइए क्या सेवा करूं?

दादा जी उसके व्यवहार से बहुत खुश हुए और उसको अपनी समस्या बताई।

“प्राइवेट” बोला, दादा जी आप निश्चिंत हो के बैठिए, मैं अभी देखता हूं।

उसने मोबाइल की ब्राइटनेस बढ़ा दी और बोला –

“लीजिए दादा जी, मोबाइल का बल्ब फ्यूज हो गया था, मैंने नया लगा दिया है। बल्ब 500 रूपये का है।”

(हालांकि बल्ब फ्यूज नहीं था, तथापि दादा जी उसकी जी-हुजूरी से इतने गदगद थे, कि उन्हें “प्राइवेट” की इस चालबाजी और अपने ठगे जाने का ख्याल भी नहीं आया)

दादा जी ने खुशी-खुशी 500 रूपये उसको बल्ब के दे दिए।

कुछ देर बाद दादा जी से उनका बड़ा बेटा, जिसका नाम #निजी_आयोग था, मिलने आया।

दादा जी ने बातों-बातों में “सरकारी” के निकम्मेपन और “प्राइवेट” की कार्य कुशलता की तारीफ करते हुए आज की पूरी घटना बता दी।

निजी_आयोग भोले-भाले दादा जी के साथ हुए अन्याय को समझ गया।

निजीआयोग ने “प्राइवेट” से संपर्क किया तो उसने 100 रूपये चाचा (#निजी_आयोग) के हाथ में रख दिए और बोला-

“दादा जी और पिता जी के सामने मेरी थोड़ा जमकर तारीफ कर देना।”

अगले दिन #निजी_आयोग ने दादा जी और पिता जी को “प्राइवेट” के गुणों का बखान कर दिया।

पिताजी एकदम धृतराष्ट्र के माफिक जन्मांध थे, गुस्से में आकर बोले- इस निकम्मे “सरकारी” को घर से बाहर निकालो, आज से पूरे घर की देखभाल “प्राइवेट” करेगा!

“सरकारी” अवाक है, निःशब्द है, उसके मुंह से बोल नहीं फूट पा रहा है।

वह अपनी सामर्थ्य और उपयोगिता दादा जी एवं पिता जी को समझाना चाहता है, परंतु सामने से बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। डर रहा है कि कहीं घर से निकालने के साथ ही उसे भी राष्ट्र विरोधी और राष्ट्र-द्रोही या फिर सेना का मनोबल गिराने वाला ना घोषित कर दिया जाए।

दरवाजे के पीछे से “प्राइवेट” मुस्कुरा रहा है।

स्त्रोत:- Social media, लेखक- unknown,